सयारा देर से सोई। देर से सोई, तो देर से उठी। देर से उठी, तो हर काम में देर होती चली गई। वह दौड़ते-दौड़ते स्कूल बस तक पहुंच गई। एक पल की और देरी हो जाती, तो बस छूट ही जाती। वह बस में चढ़ी ही थी कि रीमा बोली, “एक ही सीट बची है। आखिर वाली।” सयारा बस में सबसे पीछे वाली सीट पर बैठ गई।
स्कूल गेट आया। बस रुकी, बच्चे उतरने लगे। सयारा को सबसे बाद में उतरना था। अचानक उसकी नजर एक सीट के नीचे पड़ी। वहां सौ रुपए का एक नोट मुड़ा-तुड़ा पड़ा था। सयारा ने झट से वह नोट उठा लिया। उसने वह नोट मुट्ठी में बंद कर लिया। वह क्लास में आ पहुंची। पलक झपकते ही उसने नोट अपने स्कूल बैग में रख लिया।
सुबह स्कूल में प्रार्थना सभा हुई। अब पहला पीरियड गणित का था। सयारा का मन पढ़ाई में नहीं लग रहा था। वह सोच रही थी, ‘इंटरवल में कोल्ड ड्रिंक पिऊंगी। दो समोसे भी खाऊंगी। दो पैकेट चिप्स के भी लूंगी, तब भी रुपए बच ही जाएंगे।’ जैसे-तैसे पहला पीरियड बीता। दूसरा पीरियड हिंदी का था। लेकिन सयारा तो इंटरवल का इंतजार कर रही थी। वह सोचने लगी, ‘आज तो मजा आ गया। सौ रुपए तो बहुत ज्यादा होते हैं। मुझे दो-तीन दिन घर का टिफिन भी नहीं खाना पड़ेगा। काश! मुझे सौ रुपए हर रोज मिल जाते।’
तीसरा पीरियड भी बीत गया। चौथा पीरियड अंग्रेजी का था। सयारा सोचने लगी, ‘बस, अब कुछ ही देर में इंटरवल की घंटी बजने वाली है। आज तो भूख कुछ ज्यादा ही लग रही है।’
यह क्या, तभी शकीला रोने लगी। क्लास के सारे बच्चे उससे पूछने लगे। वह रोते-रोते बोली, “मेरा सौ रुपए का नोट खो गया।
पता नहीं, कब स्कर्ट की जेब से गिर गया। कहां गिरा, पता ही नहीं चला। स्कूल की छुट्टी के बाद मुझे अम्मी के लिए दवा लेकर जानी थी। अब्बू भी यहां नहीं हैं।”
अक्षरा ने कहा, “स्कूल में रुप